अगर आपको पता चले कि आज प्रधानमंत्री के नाम पर बने नमो एप डाउनलोड करने वाले हैं और उस एप ने आपके मोबाइले से ईमेल, उसकी बातचीत, फोटो सहित बाकी सारी जानकारी उठाकर किसी तीसरे को दे दिया तो है क्या आप एक बार के लिए सतर्क नहीं होंगे। एप डाउनलोड करने में कई बार आप और हम ही सहमति देते हैं, मगर क्या यह तर्क काफी है आपकी सारी बातें किसी और के हवाले कर देने के लिए?
इसलिवए फेसबुक कैंब्रिज एनालिटिका के बहाने डेटा की डकैती के मसले पर ठीक से विचार कीजिए। यह बहुत ही शातिर लोगों का खेल है। हमें अपनी जानकारी बढ़ानी चाहिए कि डेटा की डकैती से जो माल उड़ाया जाता है, उसका अलीबाबा और चालीस चोरों का गैंग क्या करता है। मुमकिन है कि आप प्रभावशाली लेखक हों, चुनाव के समय आप कुछ भी लिखें, उसे पहुंचने से रोक दिया जाए। इन जानकारियों के आधार पर कोई आपको ब्लैकमेल करने लगे और कुछ ऐसा काम करने पर मजबूर कर दे जो आपकी बर्बादी का रास्ता खोलता हो। जल्दी में सहमति का बटन दबा देने या बीमा की हज़ार शर्तों को पढ़ कर न समझ पाने का यह नहीं मतलब होना चाहिए कि कोई प्रीमियम लेकर भाग जाए। फिर तो एक दिन डकैत कहेगा कि हम तो गए थे इनके घर में, बंदूक दिखाए तो किसी ने विरोध ही नहीं किया, सो हम सारा माल ले आए।
- प्रधानमंत्री ने तो इतना कहा कि नमो एप डाउनोड कर लीजिए। क्या उन्होंने बताया कि आपके डाउनलोड करने पर हम सारी जानकारी ले लेंगे और किसी तीसरे को देंगे जो आपकी प्रोफाइल तैयार करेगा और फिर चुनावों में या किसी और वक्त के लिए आपको फिक्स किया जाएगा? बाकी डेटा तो इस तरह का डाका डालते ही हैं, प्रधानमंत्री के नाम से बना डेटा ही अगर प्राइवेसी के मानक पर खरा नहीं उतरेगा तो फिर क्या बचेगा। हमें नहीं पता कि भीम एप डाउनलोड करने पर या किसी और सरकारी एप को डाउनलोड करने पर आपकी कितनी गुप्त बातें सरकार के पास चली जाती होंगी।
इसलिवए फेसबुक कैंब्रिज एनालिटिका के बहाने डेटा की डकैती के मसले पर ठीक से विचार कीजिए। यह बहुत ही शातिर लोगों का खेल है। हमें अपनी जानकारी बढ़ानी चाहिए कि डेटा की डकैती से जो माल उड़ाया जाता है, उसका अलीबाबा और चालीस चोरों का गैंग क्या करता है। मुमकिन है कि आप प्रभावशाली लेखक हों, चुनाव के समय आप कुछ भी लिखें, उसे पहुंचने से रोक दिया जाए। इन जानकारियों के आधार पर कोई आपको ब्लैकमेल करने लगे और कुछ ऐसा काम करने पर मजबूर कर दे जो आपकी बर्बादी का रास्ता खोलता हो। जल्दी में सहमति का बटन दबा देने या बीमा की हज़ार शर्तों को पढ़ कर न समझ पाने का यह नहीं मतलब होना चाहिए कि कोई प्रीमियम लेकर भाग जाए। फिर तो एक दिन डकैत कहेगा कि हम तो गए थे इनके घर में, बंदूक दिखाए तो किसी ने विरोध ही नहीं किया, सो हम सारा माल ले आए।
इसलिए यह खेल नहीं है कि हमारे देश में तो हम सब खुद ही बताते रहते हैं। प्राइवेसी यहां कुछ नहीं है। तो क्या कोई धोखा देकर आपके फोन से जानकारी ले जाए, आप परवाह नहीं करेंगे। तो जो यह लिखता है, उसका फोन एक दिन के मांग लीजिए, देखिए वह प्राइवेसी पर लेक्चर देने लगेगा कि यह कितना ज़रूरी है, उसका अधिकार है। इस बहस के बहाने कम से कम इसके ख़तरों को तो जानेंगे। कमेंट में altnews का एक लेख शेयर कर रहा हूं इसी पर। वायर, स्क्रोल पर लेख हैं
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रविश कुमार